हाथ थाम रखा है क्या ?
आज कल चाँद बड़े ग़ुरूर में है,
सुनो आज कल तुम छत पर नही जा रहे क्या ?
हर तरफ धूप बस मेरे रास्ते मे ही छांव है,
सुनो तुमने अपना आँचल लहरा रखा है क्या ?
ये रास्ता आज खुसबू से नहाया हुआ है,
सुनो आज तुम इधर से गुजरे थे क्या ?
तन्हा होकर भी मैं अकेला नही हूँ,
सुनो तुमने मेरा हाथ थाम रखा है क्या?
दीपक पटेल ‘सारांश’