” हाजमोला “
हमारे ” सभ्य समाज ” में इस तरह के ” सभ्य व्यक्ति ” सबके जीवन में एक ना एक तो होते ही हैं और जिनके जीवन में नहीं हैं वो ऐश करें…लेकिन सबके साथ कविता का आनंद ज़रूर लें ???
” हाजमोला ”
कैसे तुम इतना राज़ दबा लेते हो
बिना हाजमोला के सब पचा लेते हो ?
अगर खाने में कुछ तनिक भी खराब हो
तबियत नासाज़ है कह सबको बता देते हो ,
इतने गड़बड़ झाले अपने अंदर रखते हो
इतने गलत इरादे अपने साथ लेकर चलते हो ,
चेहरे पर ज़रा सी शिकन नही आने देते हो
बड़ी आसानी से सबको यूँ हीं भरमा लेते हो ,
हाजमोला तो बिगड़ते हाजमें के लिए खाते हो
दिल के गरल को कैसे झट हजम कर जाते हो ,
पल दो पल को तो सबको बहकाने में माहिर हो
कोशिश करते हो तुम्हारा झूठ ना ज़ाहिर हो ,
इतनी महीन चाल चलते बात – बात पर हो
पर पकड़ में आ जाते ज़रा सी बात पर हो ,
मैं सोचता हूँ ये दांव तुम्हारा आखिरी आखिर हो
लेकिन ये भी है पता तुम बड़े ही शातिर हो ,
सारी चालाकी तुम्हारी अब तो भुलाना होगा
मुझे भी अपना दिमाग थोड़ा सा चलाना होगा ,
हर छुपा राज़ अब तुम्हीं से निकलवाना होगा
एक अलग तरह का हाजमोला खिलाना होगा ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 20/10/2020 )