हाई स्कूल की परीक्षा सम्मान सहित उत्तीर्ण
हाई स्कूल की परीक्षा सम्मान सहित उत्तीर्ण
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मैंने हाई स्कूल, सुंदर लाल इंटर कॉलेज-रामपुर से 1975 में किया। मेरे अंक 500 में 384 थे ।अतः योग में कुल मिलाकर 75% से अधिक होने के कारण मार्कशीट पर ” सम्मान सहित उत्तीर्ण ” अंकित था। यह विशेष गौरव की बात होती थी तथा किसी- किसी की ही मार्कशीट पर “सम्मान सहित उत्तीर्ण ” होना लिखा होता था ।मेरी गणित, विज्ञान और जीव विज्ञान में विशेष योग्यता थी अर्थात 75% से अधिक थे ।उस समय हाई स्कूल में पास और फेल होना -यही अपने आप में महत्वपूर्ण होता था। जो लोग हाई स्कूल यूपी बोर्ड में पास हो जाते थे, उनके घर खुशी का माहौल छा जाता था । ऐसा लगता था जैसे कोई बड़ी उपलब्धि प्राप्त कर ली हो । प्रथम श्रेणी प्राप्त करना ऐसा ही था जैसे आजकल नव्वे प्रतिशत से अधिक अंक प्राप्त करना । सम्मान सहित तो उस समय बहुत कम संख्या में ही शायद हुआ करते थे ।
हाई स्कूल की उपलब्धि के पीछे मैं टैगोर शिशु निकेतन की एक घटना को उस का श्रेय देना चाहता हूं । कक्षा पांच की जब कॉपियां जँच रही थीं, तब प्रधानाचार्य जी ने मेरे पिताजी को आकर बताया कि “रवि का कक्षा में दूसरा स्थान है। पहला स्थान किसी और का आ रहा है।”
पिताजी बोले” ठीक है जो भी आ रहा है। “उस समय कक्षा पॉंच में प्रथम स्थान प्राप्त करने का अपने आप में एक विशेष महत्व और सम्मान हुआ करता था । प्रथम स्थान प्राप्तकर्ता को गले में मेडल पहनाया जाता था। बाद में जब रिजल्ट बँटा तथा पुरस्कार वितरण हुआ तब मेरा कक्षा में द्वितीय स्थान देख कर बहुतों को काफी आश्चर्य हुआ। वह सोचते थे कि इस लड़के के पिताजी का स्कूल है, अतः यह तो बड़ी आसानी से नंबर बढ़वा कर प्रथम स्थान प्राप्त कर सकता था। यह सब देख सुनकर मुझे बहुत अच्छा लगा।
सच पूछिए तो आज भी मेरे लिए हाईस्कूल की परीक्षा “सम्मान सहित उत्तीर्ण” करना उतनी गौरव की बात नहीं है, जितनी कक्षा 5 में द्वितीय स्थान प्राप्त करने की घटना है । इसके पीछे एक ही थ्योरी काम कर रही थी कि जो उपलब्धि भी प्राप्त करनी है, अपने बलबूते पर करो। किसी प्रकार के जोड़-तोड़, भाई-भतीजावाद अथवा गलत तरीके से तुम्हें कुछ प्राप्त नहीं करने दिया जाएगा।
1975 के जमाने में जिसके सौ में साठ आते थे, उसके बारे में जो उस समय स्थिति होती थी, उसके संबंध में एक कविता( कुंडलिया) प्रस्तुत है:-
पहले नंबर थे कहॉं, जिसके सौ में साठ
दुनिया कहती वाह रे, वाह-वाह क्या ठाठ
वाह-वाह क्या ठाठ, शहर-भर में इतराता
मित्र-बंधु हर एक, बधाई देने आता
कहते रवि कविराय, जमाना कुछ भी कह ले
नब्बे में कब बात , साठ में थी जो पहले
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लेखक :रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 15451