हाईकमान (हास्य व्यंग्य)
हाईकमान (हास्य व्यंग्य)
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आमतौर पर हाईकमान का मतलब एक आदमी होता है । उसने अपने पास किसी एक और को बिठा लिया ,तब यह दो लोगों का हाईकमान नहीं हो जाता बल्कि डेढ़ लोगों का हाईकमान कहलाता है । हाईकमान में अनेक बार तीन या चार लोग भी होते हैं । दुर्लभ रूप से इसमें छह-सात लोगों की कमेटी मानी जाती है । जितने लोग हाईकमान में पहले से घुसे होते हैं ,वह किसी नए आदमी को हाईकमान में शामिल नहीं होने देते । मान लीजिए हाईकमान में चार लोग हैं ,पांचवा अगर यह चाहे कि उसे भी हाईकमान में शामिल कर लिया जाए तो बाकी चार लोग दूर से ही उसे देख कर मुंह बिचका देंगे ।
अनेक बार सगे भाई-बहन एक दूसरे को हाईकमान में शामिल करने से कतराते हैं । माँ-बेटे ,बाप-बेटे ,ससुर-दामाद ,सास-बहू आदि के अनेक झगड़े हाईकमान के चक्कर में ही चलते रहते हैं । सास कहती है कि बहू को हाईकमान में शामिल नहीं करूंगी । बहू चाहती है कि चाभियों का गुच्छा सास की साड़ी से हटकर उसकी साड़ी पर लटकने लगे ।
हाईकमान देखा जाए तो एक रहस्य से भरी हुई वस्तु है । निराकार ब्रह्म के समान इसकी परिकल्पना ही की जा सकती है । हाईकमान देखा नहीं जा सकता । आप किसी व्यक्ति की फोटो हाथ में लेकर यह नहीं कह सकते कि यह सज्जन हाईकमान हैं । क्योंकि अगर किसी फोटो को ही हाईकमान बताना होता ,तो हाईकमान शब्द की उपज ही क्यों होती ? कोई नहीं जानता कि हाईकमान किसे कहते हैं ? इसके बनने का क्या नियम है ? इसमें कितने लोग होते हैं तथा इसके अधिकार क्षेत्र में क्या-क्या है ? यह भी कहीं नहीं लिखा है कि हाईकमान पीढ़ी-दर-पीढ़ी एक ही परिवार में चलेगा या परिवार से बाहर भी कोई हाईकमान बन सकता है ?
जब हाईकमान कमजोर हो जाता है ,तब राज्यों के छोटे-छोटे समूह ताकतवर हो जाते हैं । अन्यथा ताकतवर हाईकमान हमेशा निचले स्तर के नेतृत्व को अपनी मुट्ठी में रखता है । हाईकमान जैसा कि शब्द से ही प्रकट होता है ,यह एक उच्च आसन पर विराजमान अद्वितीय शक्ति होती है जो अपनी दिव्यता से दूर-दूर तक सब को नियंत्रण में रखती है । अर्थात सूबेदार लोग अथवा राज्यों के प्रभारी छोटे-मोटे काम तो अपनी मर्जी से कर सकते हैं लेकिन जहां सत्ता के वास्तविक नियंत्रण का प्रश्न आएगा, ऐसे मामलों में हाईकमान की ही चलेगी ।
कई बार राज्यों के प्रभारी इतने ताकतवर हो जाते हैं कि वह अपनी अलग सत्ता कायम कर लेते हैं और हाईकमान उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाता । वह कहते हैं कि तुम काहे के हाईकमान ? हम तुमको हाईकमान नहीं मानते ! हाईकमान बेचारा मुंह मसोसकर रह जाता है । सोचता है ,काश ! पहले से सूबेदार की नाक में नकेल डाल कर रखी होती ,तो आज यह नौबत तो नहीं आती कि वह हाईकमान को हाईकमान ही नहीं मान रहा है। हाईकमान अपने को अगर सिद्ध करना है तो हाईकमान वास्तव में बनकर दिखाओ अर्थात सूबेदार को फरमान जारी करो । उसे बिना मतलब यानि बिना काम के हाईकमान के दफ्तर में तलब करो । वह आए और तुम ऊंचे आसन पर बैठकर उसे फिजूल में कुछ बातें कह कर आदेशित करो। अगर ऐसा नहीं करोगे तो फिर तुम काहे के हाईकमान ?
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लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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