हाइकु
” कृषक ”
*******
(1)गर्म तपन
उगलता सूरज
कृषि सुखाई।
(2)बिन पानी के
आग लगी खेतों में
कृषक रोए।
(3)कृषक छाले
सुलग राख हुए
कोई न देखे।
(4)अन्नदाता ने
सब जन हिताय
आत्महत्या की।
(5)कैसे रोपेगा
बंजर भूमि धान
मूक किसान।
डॉ. रजनी अग्रवाल”वाग्देवी रत्ना”
वाराणसी(उ.प्र.)
संपादिका-साहित्य धरोहर।