हां, हम भी किसी के भक्त हैं ……..पर अंधभक्त नहीं
‘मैं मूरख, खल कामी, कृपा करो भर्ता’ भगवान जगदीशजी की आरती की यह पंक्तियां आप सबने सुनी होंगी. देखिए यहां एक अंधभक्त किस तरह अपने आपको ‘मूर्ख, दुष्ट और कामी’ घोषित कर रहा है. वास्तव में मित्रों, अंधभक्तों की यही विशेषता होती है. तार्किकता को तिलांजलि देकर ही किसी का अंधभक्त बना जा सकता है. इन दिनों देश के कुछ राजनीतिक भक्तों का भी यही हाल है. जबकि देश की मौजूदा सरकार ने जो भी अब तक अच्छा किया, वे सब पिछली सरकार के काम थे लेकिन जो कुछ भी क्रांतिकारी और नया के नाम पर किया गया, वे सब देश का बंटाधार करनेवाले थे. नोटबंदी, जीएसटी के बाद अब कैब और एनआरसी ये सब देश में अफरा-तफरी मचानेवाले और नफरत फैलानेवाले साबित हो रहे हैं. लेकिन भक्त हैं कि भक्ति से बाज नहीं आ रहे हैं. आज 16 दिसंबर शाम 4.30 बजे मैं आॅफिस के लिए आ रहा था, तो बस में सवार एक भक्त से मेरी कैब और एनआरसी को लेकर भिड़ंत हो गई. भक्त अपने आराध्यों (मोदी और शाह) के वक्तव्यों का आधार लेकर जोर-जोर से गुर्राते हुए कहने लगा -‘अगर मोदीजी पाकिस्तान और बांग्लादेश के पीड़ित हिंदू भाइयों को नागरिकता दे रहे हैं तो क्या गलत है?’ मैं कुछ कहता कि मुझे बोलने का अवसर दिए बगैर उसने फिर एक प्रश्न मुझ पर दाग दिया- ‘अरे भाई यह बिल किसी की नागरिकता छीनने के लिए नहीं है, बांग्लादेश और पाकिस्तान के किसी पीड़ित हिंदू को देने के लिए है, तो मोदी जी क्या गलत कर रहे हैं?’मैं कुछ बोलता कि एक बार फिर एनआरसी को लेकर मुझे भस्म कर देनेवाली आंखें दिखाते हुए बोला, ‘बांग्लादेशी और पाकिस्तानी घुसपैठियों को देश से बाहर करने के लिए मोदी जी ने एनआरसी लाया है तो क्या गलत किया है? विपक्ष के लोग सिर्फ विरोध करने के लिए विरोध कर रहे हैं.’
देखिए किस तरह मोदी-शाह-आरएसएस मंडली लोगों का सांप्रदायकीकरण करने में कामयाब हुई है. मोदी-शाह भी इन तमाम विषयों पर देश को गुमराह करने में लगे हैं. यहां तक कि इन काले कानूनों का विरोध करनेवालों को हिंदू विरोधी और देशद्रोही तक ठहराने की कोशिश की जा रही है. देश में जो आग लगी है, उसके लिए विपक्ष को दोषी ठहराया जा रहा है.
मेरे मित्रों, नागरिकता संशोधन कानून का जो विरोध हो रहा है, यह कोई अस्वाभाविक प्रतिक्रिया नहीं कर रहा है. सवा सौ करोड़ की विराट आबादी वाले मुल्क में जब इस तरह का फैसला होता है तो वह सिर्फ उस देश पर ही असर नहीं डालता, बल्कि पूरे उपमहाद्वीप में आवेग और ज्वार पैदा करता है इसीलिए कोई भी बड़े राष्ट्र इस तरह के निर्णय सोच-समझकर करते हैं. नागरिक संशोधन कानून का असर पूरे उपमहाद्वीप में पड़ेगा. भारत के पड़ोसियों में इन दिनों बांग्लादेश और भूटान के साथ ही उसके गहरे दोस्ताना संबंध बचे हैं. अब इस कानून से बांग्लादेश भी खिन्न दिखाई दे रहा है. बड़ा देश होने के नाते भारत के लिए पड़ोसियों के हाल समझना भी अत्यंत जरूरी है. पाकिस्तान को छोड़ दीजिए, लेकिन अन्य देशों से रिश्ते बेहतर बनाना सिर्फउन देशों की ही जिम्मेदारी नहीं है. हमारा रवैया भी बहुत मायने रखता है. कई बार जरूरी मसलों को ठंडे बस्ते में दबाकर रखना भी एक किस्म का समाधान ही होता है. अगर पिछली सरकारों ने इस तरह के कदम उठाने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई है तो इसका अर्थ यह कतई नहीं निकाला जाना चाहिए कि पिछली सरकारें कायर थीं और वर्तमान सरकार ही बहादुरी के कीर्तिमान रच रही है. इसके उलट यह भी एक अध्ययन का विषय होना चाहिए कि इस तरह के फैसले अब तक नहीं लिए गए तो कारण क्या थे? क्या उनसे भारतीय समाज का संवैधानिक तानाबाना बिखरने का खतरा था ? समझना होगा कि कुछ विषय हर देश के सामने होते हैं, जिन पर निर्णय लेने के लिए किसी डॉक्टर ने नहीं कहा होता. सबसे बड़ी बाद तो जो पहले का नागरिकता कानून ही किसी पीड़ित को नागरिकता देने या न देने का निर्णय लेने के लिए पर्याप्त था. मौजूदा सरकार के बनाए गए कानून की यह विशेषता है कि इस कानून में पाकिस्तान, बांग्लादेश और मुस्लिम शब्द का इस्तेमाल किया है. इस कानून में शामिल किए गए इन्हीं शब्दों के कारण ‘भक्तजन’ खुश हैं और जो सच्चे देशप्रेमी और धर्मनिरपेक्ष सोच रखनेवाले लोेग हैं, वे नाराज हैं. भक्तों, भक्ति रखो, हम भी मानवतावादी विचारधारा की भक्ति करते हैं लेकिन हम तुम्हारे जैसे भक्त नहीं हैं कि अपनी तार्किकता और इंसानियत को गैरवी रख दें-हमारी भक्ति और तु्म्हारी भक्ति में यही अंतर है.
देश में इस समय अन्य समस्याओं से निपटने के लिए सरकार को युद्ध स्तर पर काम करने की जरूरत है. बेरोजगारी इतने विकराल रूप में आजादी के बाद कभी नहीं रही. नए नौजवानों के हाथ में काम नहीं आ रहा है. उल्टे बड़ी तादाद में लोगों के रोजगार छूटे हैं. भारत के विशाल आकार के हिसाब से बड़ा और चुस्त प्रशासनिक अमला हमारे पास नहीं है. हर विभाग में बड़ी तादाद में पद खाली पड़े हैं. जो खाली हो रहे हैं उन्हें भरा नहीं जा रहा है. बढ़ते अपराधों का गंभीर आर्थिक-सामाजिक विश्लेषण करेंगे तो पाएंगे कि जवान खÞून का असंतोष एक नए किस्म की खतरे की घंटी बजा रहा है. अब तो यह पढ़ा-लिखा युवा खेती में भी अपना भविष्य नहीं देखता. कृषि पहले ही दम तोड़ने की स्थिति में है. उत्पादन वृद्धि के आंकड़े अब दिल को ठंडक नहीं पहुंचाते. प्राथमिक और स्कूली शिक्षा के स्तर में गिरावट सत्ता के शिखरों से नजर नहीं आतीं. हमारे नौनिहालों की नींव खोखली सी है. अच्छे शोध और शिक्षकों का उत्पादन हम नहीं कर पा रहे हैं. स्वास्थ्य सेवाओं का बुरा हाल है. सरकारी स्कूल और अस्पताल हमें जैसे बोझ लगने लगे हैं. पानी और बिजली की खेती जिस रफ्तार से होनी चाहिए, नहीं हो रही है. औद्योगिक कुपोषण दूर करने की योजनाएं जमीन पर नहीं दिखाई दे रही हैं. इन तात्कालिक महत्व के विषयों पर ध्यान न देकर नागरिक संशोधन कानून की फौरी आवश्यकता क्या थी? अगर इसके पीछे वोट की राजनीति और तुष्टिकरण की नीति नहीं है तो यकीनन इस फैसले को इसी समय करने के पीछे का कारण देश जानना चाहेगा मोदी-शाह जी!! देश में आपने आग लगा दी और बातें बनाते हुए मगरमच्छी आंसू बहा रहे हैं. धिक्कार है तुम्हारी नीतियों और मानसिकता को!!!
– 16 दिसंबर 2019 सोमवार