हां हम नाराज़ हैं…
हाँ हम नाराज़ हैं
हम किसी और से नहीं
शायद, खुद ही से नाराज हैं
अपनी बेवसी,
अपनी कुछ न कर पाने की लाचारी से,
देख…
लोगों का इंसान से पशु बनने की तैयार से
औरतों के पूरे वजूद को
छाती और योनि के बीच
सिमटा कर रख देने की घटिया बीमारी से
हम नाराज़ हैं, शायद
खुद कि पहचान को
योनि और छाती तक सिमट कर रह जाते देख
हाँ… शायद हम सब से नाराज़ हैं
जिन्होंने हमें ये पहचान दी
जिन्होंने हमारे वजूद को गाली दी
जिन्होंने जननी को
जननांग से ऊपर कुछ नहीं समझा
हम सब से, सभी से नाराज़ हैं, शायद
मगर हमारी नाराजगी से कित्ता क्या बदल जायेगा
कुछ भी तो नहीं …
पशु एक बार को अपनी पशुता छोड़ भी दे
इंसान में से पशुता कैसे निकाला जायेगा
हाँ हम नाराज़ हैं, खुद से, तुम से, सब से !
~ सिद्धार्थ