हां राम, समर शेष है
आज भी वही
सागर है
वही जिद
रास्ता नहीं दूंगा
युगों से यही तो
हो रहा है
कोई किसी को
रास्ता नहीं देता
मार्ग, पथ, रास्ता
सबकी अपनी
गति है…
कोई दौड़ रहा है
कोई उड़ रहा है
कोई रेंग रहा है।।
कोई भाव शून्य है
कोई भाव खा रहा है
भंगिमा बताती हैं…
समर शेष है…!
हां राम!
समर शेष है।
सूर्यकांत द्विवेदी