हां मैं ही हूँ किसान।
तुम्हीं हो वो मजदूर किसान
तुम्हीं हो दूसरों कि शान की पहचान
जो कड़कती धूप, वर्षा से लड़ते हो
फेंक दो तुम इन चुभते काटें को
आखिर तुम इनसे इतना क्यों डरते हो
पहचानो तुम अपने उस ताकत को
जिस ताकत से किरणों से लड़ते हो
झुक जाएंगे सभी के सिर तुम्हारे चरणों में
रोक दो अपने क़दमों को वहां जाने से
जहां से जीवन चलता है
बैठ जाओ तुम भी अपने झोपडी में
फिर देखो महल से मानव कैसे निकलता है।
संजय कुमार ✍️✍️