हां मैं हिंदी हूं
हां मैं हिंदी हूं,
जिसके माथे पर एक
चमकती हुई बिंदी हूँ
मुझसे ही कवि,
और गीतकार हुये
मुझसे ही रचना
और साहित्यकार हुये
मैंने ही इसे रस ,छंद और
अलंकार से संजोया है
एकता के धागे में
सबको पिरोया है
चाह नहीं इतनी कि
मैं सब पर इठलाऊं
बस इतनी सी चाहत है
विश्व पटल पर
अपनी पहचान बनाउँ
बस मेरा
इतना मान बढ़ाना
हिंदी हूं
‘विश्व हिंदी दिवस’
पर वो सम्मान दिलाना।
कुमार दीपक “मणि”