हां मैं दोगला…!
हां मैं दोगला …!
अकेलेपन के सामने अकेला ही मैं चल रहा,
हूं मैं एक काफिर ऐसा जिसके काफिले में,
ना बचा अब हौसला…,
हां मैं दोगला…!
उम्मीद लगाई मुझसे ऐसी,
ना जाने क्यूं कैसी कैसी,
कैसे मैं बताऊं उनको,
मेरी रूह न उनके जैसी..।
ना बचा अब हौसला,
हां मैं दोगला..!
भरोसा अब मन में नहीं,
जो उसकी इच्छा, वो ही सही,
मैं तो बस चल रहा हूं,
वो लेकर जा रहा मुझको कही…।
रूक रहा हैं काफिला,
है मैं दोगला…!