हांथ जोड़ते-पैर पड़ते हैं, हर खता के बाद वो।
हांथ जोड़ते-पैर पड़ते हैं, हर खता के बाद वो।
यही करते करते खता का अम्बार लगा दिया।
आदत सी हो गई है, अगली खता की आस करूं।
अगली गलती पर, उन्हें रुसवा करूं या माफ करुं।
मैं भी पुतला हूं माटी का, भगवान् नहीं सांवरे।
अब तक उन्हें समझाऊं, अब तक उन्हें माफ करुं।
श्याम सांवरा….