हां,अब समझ आया
हां,अब समझ आया
मन वन क्यों महक रहा,
उर उपवन क्यों चहक रहा,
अंतर घट को बहक रहा,
न जाने ऐसा क्यों हो रहा।
ना कोई हर्ष प्रसून खिले,
ना कोई मीत भंवरा मिले,
ना कोई प्रीत बयार बहे,
न जाने ऐसा क्यों हो रहा।
कभी धरा देखूं नभ झांकू,
कभी छिपी खुशी आंकूं,
छोड़ चली उदासी ताकूं,
न जाने ऐसा क्यों हो रहा ।
फिरंगी मन समझने लगा
सबमें ही खुशी ढूंढने लगा,
दर्द दूसरों का बांटने लगा,
न जाने ऐसा क्यों हो रहा।
अवसाद को तजने लगा
मिलजुलकर बजने लगा,
मुस्कराहट से हंसने लगा।।
हां अब समझ आया,,,,
ऐसा क्यों हो रहा है।
-सीमा गुप्ता अलवर राजस्थान