हाँ हम ‘अर्बन नक्सल’ हैं !
देश बेच कर जो खाते हैं,
खाते नहीं जो कभी अघाते हैं
देश प्रेम की बातें
मन मेंभूले से भी कभी नही लाते हैं
देशभक्ति को जुमला बस बनाते है
वो पूँजीवाद के पैरोकार हैं…हाँ
आजकल हमारी वही सरकार है.
हम मेहनत कश लोग
मेहनत की रोटी ही खाते हैं
मेहनत से घर-बार चलाते हैं
कुछ खाते और कुछ बचाते हैं
बस हर लम्हा देश की ख़ातिर,
देश में ही आवाज़ अपनी उठाते हैं
सत्ता के कानों तक चीखें अपनी पहुंचाते हैं.
जो हम से हमारे ही हाथों से,
अपनी चिकनी चुपड़ी बातों से
हमारा लाशें उठबाने को अकुलाते हैं
और जोर-जोर से बंदेमातरम गाते हैं
और देश भक्ति पे बढ़-चढ़
के नारे भी वही लगाते है
ये जनता बिरोधी सरकार है,
जो अपने लालच से लाचार है
हमारी हक कि बातों से
उसे न कोई भी दरकार है.
हाँ हम ‘अर्बन नक्सल’ हैं,
पर देश पे ही प्यार लुटाते हैं
देश बेच जो खाते हैं,
खाकर बड़ा इतराते हैं
मेरी नजरों में देशद्रोही वही कहाते हैं.
हम तो बस देश प्रेम को दिल में ही बसाते हैं
बस उनके जैसे जिव्हा पे नहीं फिराते हैं,
हम मन ही मन में गाते हैं
माँ है ये मेरी,
माँ से प्रेम चिल्ला-चिल्ला के नहीं जताते हैं !
⇝सिद्धार्थ ⇜
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04-05-2019