हाँ मैं हूँ तेरे िइंतज़ार में
हाँ मैं हूँ तेरे इंतज़ार में
मुझे कोई पर्दा नहीं इक़रार में,
हाँ मैं हूँ तेरे इंतज़ार में,
साँसें रुकी हैं इसी दरकार में,
तू देर न कर दे इज़हार में।
हाँ मैं हूँ….
तेरी आबरू को बेदाग रखने के लिए,
नीलाम होने को तैयार हूँ बाज़ार में।
हाँ मैं हूँ….
फिर सामने आ कि खत्म होने को हैं,
चंद साँसें जो नसीब हुईं थीं तेरे दीदार में।
हाँ मैं हूँ….
बस यही अरज है, कि दुआ में खुदको बख्श दे मुझे,
इसी इन्साफ की आस में, खड़ा हूँ तेरे दरबार में।
हाँ मैं हूँ….
दवा करते थक गए, कोई मरहम काम न आया,
जाने कैसी धार थी, तेरे नयनों के औज़ार में।
हाँ मैं हूँ….
अरसे से अब आँखों से मेरी, चमक जाती नहीं,
जाने क्या असर हुआ, तेरे दीदार-ए-रुखसार में।
हाँ मैं हूँ….
एक स्पर्श देकर सुधार दे मेरी हालत,
बस चन्द साँसें बाकी हैं तेरे बीमार में।
हाँ मैं हूँ….
अब लौट आ कि एक उम्र, बीत गई तेरे इंतज़ार में,
अब तो एक झुकाव सा आने लगा, प्यार की मीनार में।
हाँ मैं हूँ….
तेरे आने का भरोसा ही है, कि जी रहा हूँ मैं,
वरना मुझे क्या सार है, इस बेमतलब संसार में।
हाँ मैं हूँ….
————-शैंकी भाटिया
7 दिसम्बर, 2016