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10 Jun 2023 · 2 min read

हाँ, मैं लकड़ी हूँ

मैं लड़की हूँ,
तभी सभी की सुनती हूँ,
माफ़ सभी को कर सकती हूँ,
कायर नही, मैं भी पहाड़ बन खड़ी हो सकती हूँ,
हाँ, मैं लड़की हूँ..।

हाथों में हथियार थाम मैं सकती हूँ,
गर्भ मैं संसार पाल मैं सकती हूँ,
दिल में प्यार डाल मैं सकती हूँ,
जीजाबाई बन, कोटि शिवाजी खड़ा कर सकती हूँ,
हाँ मैं लड़की हूँ..।

मैं जीवन की कीमत समझती हूँ,
इसलिए मैं नही लड़ती हूँ
मैं सावित्री, मैं तारा हूँ
मैं ही देवकी, मैं ही महाराणा की पन्ना धाया हूँ
हाँ, मैं लड़की हूँ..।

दूध पिलाकर जानवर को पुरुष बनाती हूँ
इंसानों को इंसानीयत का पाठ सिखाती हूँ,
मैं ही सुरज की रश्मिरथी,
मैं ही चंद्रमा की शीतल छाया हूँ
हाँ, मैं लड़की हूँ..।

ओस की बूंद की तरह सिमटी हूँ, तो
सुनामी बन तहस-नहस कर सकती हूं
खोलता हुआ मैं लावा हूँ, चंडी का अवतार हूँ,
निर्भया की आंधी से सरकार बदल मैं सकती हूँ
हाँ, मैं लड़की हूँ…।

शंकर की छाती पर पैर जमाती हूँ
ब्रह्मांड में तांडव मचाती हूँ
स्वर्ण लंका को आग लगाती हूँ
श्रीराम का तीर बन रावण का अमृत सुखाती हूँ
हाँ, मैं लड़की हूँ..।

महाभारत का मैं केंद्र हूँ,
भीम की गदा का,दुर्योधन की जंघा पर प्रहार हूँ
पुरुषों के रण की टंकार हूँ,
मैं ही पदमा, मैं ही रजिया
लक्ष्मी बन, रणभूमि की धूल से माँग सजाती हूँ,
हाँ मैं लड़की हूँ..।

मैं गार्गी हूँ, मैं लोपा हूँ
मैं ही सिया मैं ही द्रोपा हूँ
मैं शक्ति पुंज दुर्गा,
मैं मरियम हूँ,
मैं ही फातिमा, मैं ही महामाया हूँ
मैं ही खदीजा, मैं ही अमीना,
मैं ही पुरुष की रचनाकार रहस्यमयी माया हूँ
मैं ही धरती, मैं ही गंगा ,मैं ही प्रकृति
और ब्रह्म की महामाया हूँ,
हाँ, मैं लड़की हूँ
धरती बन, सबको धारण करती हूँ
हाँ, मैं लड़की हूँ..।

प्रशांत सोलंकी,
नई दिल्ली-07

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