“हाँ! मैं मजदूर हूं…”
“हाँ! मैं मजदूर हूँ…”
हां! मैं मजदूर हूं
मैं भी तो इसी देश का वासी हूं, दिहाड़ीदार कामगार श्रमिक हूं मजबूर हूं।
दास हूं सेवक हूं हां मैं मजदूर हूं।। वतन हमें भी प्यारा है,
हमें भी वतन पर नाज है।
मगर कई बार ऐसा हुआ है,
हमारी किसी ने ना सुनी,
बहुत धीमी दबी हुई अनसुनी मेरी आवाज है।।
मैं कितना सहता हूं मगर चुप रहता हूं।
किसी की नजरों में कठोर हूं किसी की नजरों में बहुत ही क्रूर हूं।
मैं भी तो इसी देश का वासी हूं दिहाड़ीदार कामगार श्रमिक हूं मजबूर हूं।
दास हूं सेवक हूं हां मैं मजदूर हूं।।
मेरे नसीब में मात्र मिट्टी है,
मिट्टी में ही मुझको मिल जाना है।
रुकना कहां सीखा है मैंने चलना है आगे बढ़ते जाना है।।
मंजिल कहां मैं आज तक समझ नहीं पाया,
ना ही देख पाया, ना ही कुछ नजर आया।।
कहां मेरा ठिकाना
सुखचैन ऐसो आराम मेरे नसीब में लिखे ही कहां है,
यह सब बातें मेरे लिए बेबुनियाद हैं।
इन सब बातों से तो मैं कोसों दूर हूं।
मैं भी तो इसी देश का वासी हूं
दिहाड़ीदार कामगार श्रमिक हूं मजबूर हूं।
दास हूं सेवक हूं हां मैं मजदूर हूं।।
मैं नजर कहां आया किसी को, इतनी भीड़ में मैं अकेला रहा। इतना वक्त मुझे कहां मिला
कहां मेरे लिए कोई खेल कहां मेरे लिए कोई मेला रहा।।
ताने और नफरतें जहां भर की जिंदगी भर मिली।
इनसे वास्ता मेरा हर पल हर दम रहा।।
सिसकियां अपने तक ही तो रखी सदा मैंने,
कब भला दुनिया को गला फाड़ कुछ कहा।।
कोई हमें भी समझे मेरे हालातों को जाने,
कुछ टुकड़े ही समेटने हैं,
कहां अब चूर-चूर हूं।
मैं भी तो इसी देश का वासी हूं दिहाड़ीदार कामगार श्रमिक हूं मजबूर हूं।
दास हूं सेवक हूं हां मैं मजदूर हूं।।
कितने पढ़े पांव में छाले कौन जाने,
कितने पढ़े पांव में छाले कौन। जाने कितने पार किये जंगल पहाड़ नदी नाले कौन जाने।। कितनी रातें खुले आसमान के तले काटी।
किसने लूटा और खुशियां किसने बाटी।।
हमसे बोलने का हक छीन सकते हो मगर आंखों देखा याद रखता जरूर हूं।
मैं भी तो इसी देश का वासी हूं दिहाड़ीदार कामगार श्रमिक हूं मजबूर हूं।
दास हूं सेवक हूं हां मैं मजदूर हूं हां मैं मजदूर हूं …
:
सुनील सैनी “सीना”
रामनगर रोहतक रोड जीन्द (हरियाणा)-126102.