हाँ मैं दोमुंहा हूं।
हाँ मैं दोमुंहा हूँ,
जानना चाहते हो क्यों,
क्योंकि तुम अनेकमुहाँ हो,
मैं तुमसे कमीनगी में ,
कभी जीत ही नहीं सकता,
इसका अहसास होता ,
उसके पहले ही दोमुंहा बन गया,
फंस गया तुम्हारे व्यूह में,
अभिमन्यु तो नहीं पर ,
पता नहीं क्या बन गया,
हनुमान जी होशियार थे,
अत्यंत समझदार थे,
जब उन्हें ये भान हुआ,
की सुरसा के बढ़ते मुख से,
जीतना कठिन है,
तो वे लघु हो गए,
लंका में प्रविष्ट हो गए,
और सुरसा से जीत गए,
पर मैं फंस गया,
तुमसे ज्यादा,
और ज्यादा बड़ा होने की जिद में,
मैं जो नहीं था,
वह बन गया।