हाँ मुझे भी दर्द होता है
अंतर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस पर मेरी रचना साझा कर रही हूँ।
हाँ मुझे भी दर्द होता है
हाँ मुझे भी दर्द होता है
जब तुम कह देती हो बेधड़क बेबाक़
आपको तो कुछ दिखता नहीं जनाब
तेरी इन बातों से दिल चुभता है
कैसे कहूँ कि सब कुछ दिखता है
जब तुम पल्लू से बांध लेती हो मेरे ग़म
होंठ मुस्कुराते मगर आँखे होती है नम
कमर टूट जाए मगर हिम्मत नहीं टूटती
सारा दिन घर बच्चों से रहती हो झूजती
देखता हूँ तुम्हारी हरपल ख़ुद से ही लड़ाई
छोटे से संसार में तुम्हारी दुनिया समायी
मेरी भी दुनिया बस तुम से ही होती शुरू
ख़त्म तुम पर ही होती तुम बिन क्या करूँ
सब देखता समझता हूँ महसूस करता
न जाने क्यों बस कह नहीं सकता
काश तुम मेरी आँखे पढ़ लेती
मेरे छिपे दर्द को समझ लेती
तेरी बेरुख़ी से दिल टूटता है
तू रूठे तो लगे ख़ुदा रूठता है
झूठ है कि मर्द को दर्द नहीं होता
हाँ मुझे भी दर्द होता है
सुनती हो
मुझे भी दर्द होता है
रेखा