हाँ बाम-ए-फ़लक से तुझी को चांद निहारे (ग़ज़ल)
हाँ बाम-ए-फ़लक से तुझी को चांद निहारे
पाज़ेब की धुन खो गई जब तूने उतारे
ये माह-ए-दिसंबर भी तेरे बिन बिताया है
इससे बुरे क्या होंगे कहो मेरे सितारे
ये आंखें तेरी हैं कोई तूफ़ान-ए-समंदर
सो डूब गए इनमें मेरे दिल के शिकारे
बन जाता अगर दिल किसी दीवार के जैसा
हो जाती मरम्मत ही पलस्तर के सहारे
मैं तेरी निगाहों का मुसाफ़िर हूँ पुराना
पर तू है मुझे मोड़ के आते ही उतारे
देखा जो मेरा हाल तो रोने लगे हैं सब
मजनूँ तो मुझे दश्त से रो-रो के पुकारे
-जॉनी अहमद ‘क़ैस’