हस्ती है उसी दम से, उसकी ही मुहब्बत है।
गज़ल
221……1222…….221……1222
हस्ती है उसी दम से, उसकी ही मुहब्बत है।
जो भी है उसी रब की, हम सबपे इनायत है।
ये राम, खुदा, जीस़स, भी बांट दिये किसने,
टुकड़े हैं किए रब के, कैसी ये सियासत है।
है किसको फिक़र जनता, बच जाए कोरोना से,
जनता की शहादत पर, वोटों की कवायत है।
खाने को निवाला हो, सोने के लिए छत हो,
दो वस्त्र बदन पर हों, बस इतनी मसर्रत है।
रोते को हँसा दे हम, भूखे को खिला दे कुछ,
लें दर्द किसी का हम, बस इतनी अमानत है।
छीने न कभी रोटी, हम गैर के हिस्से की,
जो वैध नहीं क्या धन,जीवन में जलालत है।
गर प्रेम करो प्रभु से, हो कृष्ण व राधा सा,
प्रेमी से मुहब्बत ही , उस रब की इबादत है।
……✍️ प्रेमी