रेखाएँ सब कुछ कहतीं हैं
रेखाएँ सब कुछ कहती हैं
हथेली के धरातल पर
सरिताओं जैसी बहती है
पढ़ने वाले पढ़ लेते हैं
अर्थ इन्हीं के गढ़ लेते हैं
मील का पत्थर मान इन्हें
मंजिल तक बढ़ लेते हैं
ये अनजानों के लिए तो
कोरा कागज रहतीं हैं
रेखाएँ सब कुछ कहती हैं ..
धरा हथेली , जीवन रेखा
निर्मल नदियों जैसा लेखा
जो डूबा है वही तर गया
रहा किनारे तो क्या देखा
राहों की उत्ताल तरंगों
में अल्हड़ता गहती हैं
रेखाएँ सब कुछ कहती हैं …