हसीन वहम…
जो सच नहीं ‘वो’ ख़्वाब रोज़ आता क्यों है
बनके मेरा हमसफ़र, दुश्मन मुझे सताता क्यों हैं…
महज़ कफ़न-औ-फरेब हैं, इंतकाल के साथी
हर दिन फिर नए रिश्ते, तू बनाता क्यों है…
तुझसे ना कसक़, ना शिकवा, ना शिकायत
तेरा ख़्याल भी, आँसू देकर जाता क्यों है…
इश्क की आहें तमाम, आँसूओं से बह गई
देकर हमेशा ज़ख्म तू, मुस्कुराता क्यों है…
यहाँ कुछ नहीं, सिवा हसीन वहम के ‘अर्पिता’
हकीकत जानकर भी, तू अश्क बहाता क्यों है…
-✍️ देवश्री पारीक ‘अर्पिता’
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