हसीना का सबक
कल हसीना की एक झलक देखी ,
वो राहों पे कही गुनगुना रही थी ।
फिर ढूंढा उसे अपने दिल के अंदर ,
जहां वो आँख मिचोली कर मुस्कुरा रही थी ।
कुछ अरसे के बाद आया मुझे ये खयाल ,
वो बहला के मुझे सुला रही थी ।
हम दोनों कभी ख़फ़ा ना हो सकेंगे एक दूसरे से ,
वो मुझे ये समझा रही थी ।
मैंने पूछ लिया -क्यू इतना दुर कर दिया है कमबख्त तूने खुद से ,
वो हँसी और बोली – आशुतोष मै जिंदगी हूँ ,
तुझसे दुर रह के भी मोहब्बत को जिन्दा रखना सिखा रही थी ।