हस़रत
क्या होता अगर हम बच्चे होते । ना होते गिले-शिकवे और हम सच्चे होते ।
चारों ओर खुशियांँ होती और कहीं गम नहीं होते ।
ना होती खाने की फ़िक्र ना होती घर वापस लौटने की चिंता।
ना होती नहाने की जरूरत ।
ना होती गंदे होने की शिकायत।
चोट को खेल खेल में भूलना फिर खेलना।
ना होती बदले की भावना ।
रूठना मनाना फिर मान जाना जाना ।
सच्ची दोस्ती निभाना ।
लड़ना फिर दोस्ती करना ।
दोस्त की खुशी के लिए अपनी प्रिय वस्तु भी कुर्बान कर देना ।
इसी सिलसिले में खुशी खुशी पूरा दिन गुजार देना ।
सोचता हूं काश वो दिन दोबारा लौट आएं ।
और हम बचपन की तरह सब कुछ भूलकर आज की खुशियों में खो जायें ।