हसरत है मेरी
बिन तेरे अब तो गुजारा कहीं नहीं मेरा,
भरी महफ़िल में रहकर भी तन्हां रहूँगा।
तेरी यादों की खुशबू में है ऐसी तासीर
हर पल उसी अहसास से महका रहूँगा।
ताजे हैं दिल के जख्म और हरे भी हैं अभी
दर्द को प्यार तेरा मान के सहता रहूँगा।
यादों की बारिशें तो शोले ही बरसाती हैं
उनकी भीगी सी तपन में तो मैं जलता रहूँगा।
ये मिलन है हमारा वो इसी जन्म का नहीं
जन्मों जन्मों तक मैं तुझे यूँ ही ढूंढता रहूँगा।
राहें मुहब्बत की माना बहुत पथरीली है
तुझको रब मान कर पूजा तेरी करता रहूँगा।
—-रंजना माथुर दिनांक 09/09/2017
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
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