हसरतों का बोझ…
हसरतों का बोझ ढ़ोते ढ़ोते,
कितने हम खोखले हो गये है।
सुख साधन समेटते-समेटते,
धराशायी हौंसले हो गये हैं।
हसरतों का……
ढूंढते रहे अश्म में पुर सुकूं,
दौड़ती-भागती रही ज़िंदगी।
आब ए हयात पत्थर को समझ
कलेजे हि थोथले हो गये है।
हसरतों का….
खुद खाली होकर लो सजा लिए,
सपनों के सर्पिले महल बेहद।
दंभ में मनचलों की मनमानी,
रइसो के चौंचले हो गये है।
हसरतों का……
औकात आदमी की है इतनी,
खुद से शुरु गरज खत्म खुद ही पर।
आबाद करने गरज की बस्ती,
लोग यहाँ दोगले हो गये हैं।
हसरतों का…..
उम्र तो गुजर गई देख “तोषी”,
ख्वाहिशों के बागबां सजाते।
खुद पीठ पर उगाये जो गुलशन
वो बोझिल घौंसले हो गये हैं।
हसरतों का बोझ…….
संतोष सोनी “तोषी”
जोधपुर ( राज.)