हवा
हवा
है कैसे यह चीज़?
जो छू के शरीर को चली जाती है,
पकड़ हाथ में न आती है।
हवा
सर्दियों में ठंडी हो जाती है,
गर्मियों में गरम,
न खुरदरी है,
न नरम।
हवा
जब मन करे तब आ जाती है,
है अदृश्य
पर छू के चली जाती है।
जब गरम हो तब लू कहलाती है,
जब तेज हो तब तुफ़ान
जब धूल साथ में ले आती है
तब आंधी कहलाती है
है इसके अनेकों नाम।
किसी के लिए देव है हवा,
किसी के लिए दवा।
पर मेरा मानना है कि,
हर प्राणी के लिए
सांसों की माला है हवा।