हवा
मैं हूँ हवा,कहूँगी मैं ये आज।
बहुमूल्य हूँ मैं सृष्टि मैं सबसे।
मुझ बिन जीवन नहीं किसीका।
पांच तत्वों मैं एक मेरा भी है नाम।
मस्त मोला हूँ ,हूँ मैं चंचल
यदि कभी जो मैं थम जाऊँ, सृष्टि मै हहाकार मचाऊं।
खिलखिलाती हूँ मैं जब, सारी फ़िज़ा को साथ हस्साउन।
झूमने लगता है पत्ता-पत्ता,वृक्ष,खेतो को भी संग -संग नचाऊं।
अंग से जब लिपट हूँ जाती,तन-मन सब प्रफुल्लित कर जाती।
कभी जो मैं प्रचंड मचाऊं
सब कुछ साथ तबाह कर जाऊँ।
जिनका जीवन चलता मुझी से,
उन्होंने ही मुझे प्रदूषित कर डाला।
विषाक्त गैसों को मुझमे है फैलाता,
जिसने कई बार,अम्बर को भी काला कर डाला।
पटाखों का प्रयोग कर अपने कर्तव्यों से विमुखता है मोड़ते,
महत्व सब जानते हैं मेरा, फिर भी क्यों नहीं रोकथाम है करते।
स्वच्छ रखेंगे जो ये मुझको
सुरक्षित रखेंगे ये खुद को।
भारती विकास(प्रीति)