उड़ो मत हवा में
उड़ते हुए कब किसी ने,
सारी जिंदगी गुजारी है l
उड़ती है पतंग आसमां में,
पर घड़ी दो घड़ी के लिए l
होती है,एक दूजे में होड़,
कौन किसे काट जाए,
कटी पहले जो गिरी धरा पर,
काटी जो भी न बच पाई l
आसमां में उड़े पखेरू,
उड़ते फिरे खुले गगन में,
मस्त होकर विचरण करें जितना,
पर आसमां में ठौर न पाए l
दरख़्तों पर आकर ही,
मन में चैन वो पावे l
प्यास बुझावे ताल तलैया,
दाना खेत खलिहान में पावे l
पैर जमाए रखो जमीन पर,
विचार आसमान छू जाए,
सादगी का हाथ थाम लो,
कभी न मादकता आएl