हवा ने हवा को हिलाया हवा ने
हवा ने हवा को हिलाया हवा में
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हवा ने हवा को हिलाया हवा में,
गगन से फ़िजा को मिलाया हवा में।
शराबा – खराबा सुनाई दिया नहीं,
पवन के पटल पर सुनाया हवा में।
सुनाई दिया ना झरोखा हवा का,
बिठाकर पलक पर झुलाया हवा में।
बिठाया बगल में विहग ने हमी को,
गगनचर बना कर घुमाया हवा में।
दिखाया बगीचा बहुत खूबसूरत,
जगत को अल्प में भुलाया हवा में।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)