हवा की आवाज
हवा की आवाज
पंखे की तेज हवा से
सुबह के सुनसान मंजर में
खुली पुस्तक का कोई पृष्ठ
कभी-कभार
चुप्पी को तोड़ता हुआ
बेतहासा जोर लगाकर
यह चुप्पी आखिरी क्षण
टूट ही जाती है।
क्योंकि हठीली हवा
किसी को चुप देख नही सकती
यह खुद मूक होने पर भी
दूसरों को शब्द दे जाती है।
किताब भी खुद मूक है
उसमें लिखा हर शब्द मूक है।
पर जब हम पढ़ते हैं
तभी तो…………………
वह भाषा बन पाती है
पर हवा तो…………….
हर किसी बेजान निर्जीव चीज को
अपनी आवाज दे जाती है।
यही तो बड़प्पन है इसका
खुद गूंगी होने पर भी यह
बधिर चीजों से हमें
जीवन का रहस्य समझाती है।
-ः0ः-
नवल पाल प्रभाकर