हवस का सूरज।
हवस का सूरज जला देगा तेरे परवाज़ को।
अंजाम में तब्दील कर देगा तेरे आगाज़ को।
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क्यों ज़िबह करते नहीं हो नफरतों के मामले।
क्यों लिए बैठे हो दिल में तुम सुलगते साज़ को।
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चाय की चुस्की बहस से इंकलाब होते नहीं।
दूर तक पहुँचाओ अपनी बात को आवाज़ को।
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वे तुम्हारे मातहत हैं समझ जाएंगे सभी।
तुम मिलाना शुरू कर दो ख़ाक में हर ताज को।
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चाहते हो ग़र सुने दुनियां तुम्हारी बात को।
तुम जुबां पर तौल लेना अपने हर अल्फ़ाज़ को।
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दिल हमारी भी सुना कर हमपे भी कुछ रहम कर।
हम उठाते आए अब तक तेरे हरेक नाज़ को।
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एक बेहतर कल की तुझको चाहते हैं ग़र “नज़र”।
तो तुम्हे कुरबान करना ही पड़ेगा आज को।
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कुमारकलहँस