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29 Jul 2021 · 1 min read

“हलाहल”

किंचित भाव सा विस्मित चेहरा,
चेहरे के अश्क पे मायूसी का पहरा।
ना गूढ़ है ना मूढ़ है,
पर एक प्रश्न जरूर है।
आवरण यह हर्ष का कहीं तो लगता झूठ है,
कलुषित मुस्कान भी तो हलाहल की घूँट है।
आज अम्बर से भी अग्निज्वाला बरसेगी,
शबनम की एक बूँद अधर प्रभा को तरसेगी।
रक्त धमनियों में तेज़ चल रहा है,
मष्तिष्क ज्वार से ह्र्दय मचल रहा है।
उदभेदन होता सब दृश्य पटल पर,
नस-नस में है दंभ अटल पर।
नैनों से हर दर्पण लगता सुनहरा है,
रूह स्पंदन में घाव लगता गहरा है।
किंचित भाव सा विस्मित चेहरा,
चेहरे के अश्क पे मायूसी का पहरा।
✍️हेमंत पराशर✍️

Language: Hindi
1 Like · 1 Comment · 506 Views
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