# हलचल #
“अब तो आप बुड्ढे हो गए हैं।”कानों के पास आई सफेदी को देखकर श्रीमती शर्मा ने कहा।
“अरे! इसमें कौन-सी नई बात है? एक दिन सबको ही बुड्ढा होना होता है।फिर तुम्हारे लिए तो खुशी की बात है।”
“तुम भी क्या बात करते हो जी,मेरे लिए ये खुशी की बात कैसे हो सकती है?”
“समझने की कोशिश करो भागवान! अब तुम चिंतामुक्त रहोगी।नहीं तो हर समय खटका रहता होगा कि कहीं कोई तुम्हारे पति पर डोरे डालकर तुमसे छीन न ले।फिर पुरुष को तो वैसे ही प्रकृत्या चंचल माना जाता है,बेचारा कुछ करे या न करे।” शर्मा जी ने अपनी श्रीमती जी को समझाते हुए कहा।
“तुम भी न कहाँ की बात कहाँ ले जाते हो”,श्रीमती शर्मा ने इठलाते हुए कहा।
तभी दरवाज़े की डोरबेल बजती है।श्रीमती शर्मा दरवाज़ा खोलती हैं, तो सामने अपनी पड़ोसिन मोहिनी को देखती हैं, जो कि हँसमुख और चंचल स्वभाव की महिला हैं।
अच्छा, आज आप लोग घर में अकेले ही हैं।क्या बातें हो रही थीं? भाभी जी,ज़रा मुझे भी तो बताओ,मोहिनी ने कहा।
अरे ,कुछ नहीं।बस, हम लोग ऐसे ही आपस में बात करके समय काट रहे थे।फिर उन्होंने सारी बात बता दी।
मोहिनी ने कहा- नहीं, नहीं।मुझे तो आपके शर्मा जी आज भी बड़े स्मार्ट और हैंडसम लगते हैं।
मोहिनी की बात अब शर्मा जी के कानों से बार-बार आकर टकराने लगी।
वे शर्मा जी जो अभी कुछ देर पहले तक ये सोच रहे थे कि चलो ठीक ही हुआ, अब कम से कम प्यार,मुहब्बत के लफड़ों से छुट्टी हो जाएगी,जो अक्सर शादीशुदा जिंदगी में तूफान ला देते हैं।वैसे तो मैं किसी की तरफ नज़र उठाकर देखता नहीं हूँ और अगर देखा भी तो कोई महिला मुझे घास डालेगी नहीं,क्योंकि मैं बूढ़ा जो हो रहा हूँ।
लेकिन अब उन्हें ऐसा लग रहा था,मानो किसी ने ठहरे हुए,स्थिर तालाब के जल में कंकड़ी मारकर हलचल पैदा कर दी हो।
डाॅ बिपिन पाण्डेय