हलचलें
हलचलें
हलचलें
होती ज़िंदगी की हरारते
सोचो तो
जो सब अच्छा अच्छा होता
संघर्ष टेंशन दुख
का नाम नहीं होता
कौन किसे उपदेशों का देता काढ़ा
सोचो सोचो
जो गम न होता
खुशियों का क्या ठिकाना होता
अँधेरों को चीर
सूर्य का रथ आता
जो सब उजला उजला होता
क्या सूर्य, राग भैरवी और
दीपों का होता गुणगान कहीं
जो राज्य राम का होता
बिन धोबी की कानाफूसी के
क्या रच पाती रामायण कहीं
सोचों सोचों
ना होती कैकेयी
क्या रच पाता रामायण कोई
शकुनि मामा की चालों का
कौरव कर्ण की चाहों का
जो होती नहीं चाल कुटिल
क्या रचना हो पाती
महा ग्रन्थ महाभारत की
जब जब बढ़ा अन्याय कभी
प्रभु का आह्वान हुआ
विष्णु के अवतारों क
सच बिना बुराई के
क्या अवतार हमें मिल पाते
मृत्यु का हुआ भान था
फिर भी
रावण ने सीता हर ली थी
रचने को इक नया विधान
बुराई पर अच्छाई की जीत ने
दिया हमें इक नया त्यौहार
हर वर्ष जलाते पुतला रावण का
साल दर साल
वो पुतला बड़ा होता जाता
और समाज में नित नये नये
रावणों के कद भी बढ़ते जाते
सिद्ध वाक्य सा
मन में आस जगाता
फिर अवतार नया जन्म लेगा
सोचों तो क्या होता
जो ऐसा ना होता
जो वैसा ना होता
क्या अवतार हमें मिल पाते…
मीनाक्षी भटनागर
नई दिल्ली
स्वरचित
हलचलें
हलचलें
होती ज़िंदगी की हरारते
सोचो तो
जो सब अच्छा अच्छा होता
संघर्ष टेंशन दुख
का नाम नहीं होता
कौन किसे उपदेशों का देता काढ़ा
सोचो सोचो
जो गम न होता
खुशियों का क्या ठिकाना होता
अँधेरों को चीर
सूर्य का रथ आता
जो सब उजला उजला होता
क्या सूर्य, राग भैरवी और
दीपों का होता गुणगान कहीं
जो राज्य राम का होता
बिन धोबी की कानाफूसी के
क्या रच पाती रामायण कहीं
सोचों सोचों
ना होती कैकेयी
क्या रच पाता रामायण कोई
शकुनि मामा की चालों का
कौरव कर्ण की चाहों का
जो होती नहीं चाल कुटिल
क्या रचना हो पाती
महा ग्रन्थ महाभारत की
जब जब बढ़ा अन्याय कभी
प्रभु का आह्वान हुआ
विष्णु के अवतारों क
सच बिना बुराई के
क्या अवतार हमें मिल पाते
मृत्यु का हुआ भान था
फिर भी
रावण ने सीता हर ली थी
रचने को इक नया विधान
बुराई पर अच्छाई की जीत ने
दिया हमें इक नया त्यौहार
हर वर्ष जलाते पुतला रावण का
साल दर साल
वो पुतला बड़ा होता जाता
और समाज में नित नये नये
रावणों के कद भी बढ़ते जाते
सिद्ध वाक्य सा
मन में आस जगाता
फिर अवतार नया जन्म लेगा
सोचों तो क्या होता
जो ऐसा ना होता
जो वैसा ना होता
क्या अवतार हमें मिल पाते…
मीनाक्षी भटनागर
नई दिल्ली
स्वरचित
हलचलें
हलचलें
होती ज़िंदगी की हरारते
सोचो तो
जो सब अच्छा अच्छा होता
संघर्ष टेंशन दुख
का नाम नहीं होता
कौन किसे उपदेशों का देता काढ़ा
सोचो सोचो
जो गम न होता
खुशियों का क्या ठिकाना होता
अँधेरों को चीर
सूर्य का रथ आता
जो सब उजला उजला होता
क्या सूर्य, राग भैरवी और
दीपों का होता गुणगान कहीं
जो राज्य राम का होता
बिन धोबी की कानाफूसी के
क्या रच पाती रामायण कहीं
सोचों सोचों
ना होती कैकेयी
क्या रच पाता रामायण कोई
शकुनि मामा की चालों का
कौरव कर्ण की चाहों का
जो होती नहीं चाल कुटिल
क्या रचना हो पाती
महा ग्रन्थ महाभारत की
जब जब बढ़ा अन्याय कभी
प्रभु का आह्वान हुआ
विष्णु के अवतारों क
सच बिना बुराई के
क्या अवतार हमें मिल पाते
मृत्यु का हुआ भान था
फिर भी
रावण ने सीता हर ली थी
रचने को इक नया विधान
बुराई पर अच्छाई की जीत ने
दिया हमें इक नया त्यौहार
हर वर्ष जलाते पुतला रावण का
साल दर साल
वो पुतला बड़ा होता जाता
और समाज में नित नये नये
रावणों के कद भी बढ़ते जाते
सिद्ध वाक्य सा
मन में आस जगाता
फिर अवतार नया जन्म लेगा
सोचों तो क्या होता
जो ऐसा ना होता
जो वैसा ना होता
क्या अवतार हमें मिल पाते…
मीनाक्षी भटनागर
नई दिल्ली
स्वरचित
हलचलें
हलचलें
होती ज़िंदगी की हरारते
सोचो तो
जो सब अच्छा अच्छा होता
संघर्ष टेंशन दुख
का नाम नहीं होता
कौन किसे उपदेशों का देता काढ़ा
सोचो सोचो
जो गम न होता
खुशियों का क्या ठिकाना होता
अँधेरों को चीर
सूर्य का रथ आता
जो सब उजला उजला होता
क्या सूर्य, राग भैरवी और
दीपों का होता गुणगान कहीं
जो राज्य राम का होता
बिन धोबी की कानाफूसी के
क्या रच पाती रामायण कहीं
सोचों सोचों
ना होती कैकेयी
क्या रच पाता रामायण कोई
शकुनि मामा की चालों का
कौरव कर्ण की चाहों का
जो होती नहीं चाल कुटिल
क्या रचना हो पाती
महा ग्रन्थ महाभारत की
जब जब बढ़ा अन्याय कभी
प्रभु का आह्वान हुआ
विष्णु के अवतारों क
सच बिना बुराई के
क्या अवतार हमें मिल पाते
मृत्यु का हुआ भान था
फिर भी
रावण ने सीता हर ली थी
रचने को इक नया विधान
बुराई पर अच्छाई की जीत ने
दिया हमें इक नया त्यौहार
हर वर्ष जलाते पुतला रावण का
साल दर साल
वो पुतला बड़ा होता जाता
और समाज में नित नये नये
रावणों के कद भी बढ़ते जाते
सिद्ध वाक्य सा
मन में आस जगाता
फिर अवतार नया जन्म लेगा
सोचों तो क्या होता
जो ऐसा ना होता
जो वैसा ना होता
क्या अवतार हमें मिल पाते…
मीनाक्षी भटनागर
नई दिल्ली
स्वरचित