हलचलें और शोर
दिल में ये हलचलें और, है शोर कैसा,
पल में जो चुरा ले गया, है चोर कैसा।
खामखां के इल्ज़ाम भले, लगते इसपे,
खूब नाचे जो हंसकर ये, है मोर कैसा।
गहराईयाँ समन्दर सी हैं, अथाह इसमें,
उतर रहा हूँ पर पता नहीं, है छोर कैसा।
शक के दायरे में इसे रखना, वाजिब नहीं,
इसकी नादानियों पे कोई, है जोर कैसा।
प्रेम तरानों से ओझल हैं, अहसासे दिल,
पहले सा नहीं जो अब ये, है दौर कैसा।
चाहतों के महल बन रहे, अब कच्चे से,
ताउम्र ना टिके तो पक्का, है ठोर कैसा।
लाठी तू क्यूं चला रहा, अंधेरे में ‘अनिल’
ये फिजूल जो फ़रमाया तूने, है गौर कैसा।
(मेरी रचना “दिल में…शोर नहीं है” का संशोधित रूप)
©✍?25/02/2022
अनिल कुमार ‘अनिल’
anilk1604@gmail.com