हलके किरदार
किरदार ही हल्के थे
हलुआ सुस्वादिष्ठ
मगर एक चुटकी
रेत मिट्टी किरकिरा
भरे हुआ,शर्त बस एक थी,
वहीं के वहीं पारखी पस्त थे,
लोक लुभावने वायदे,
कसीदे पढ़ते नारद,
छुपा ली सब व्यापद,
हर तरफ विज्ञापन,
हर रोज सैंकड़ों ज्ञापन,
भटक रहे, नहीं कोई उद् यापन,
खरपतवार खड़े रही,
फसल सब उजाड़ कर,
किसान सब आबाद,
साल में तीन खेप, दो हजार पाकर,
एक मुश्त ले लिये,
खाद बीज डीज़ल पैट्रोल पर,
असीमित बढ़ते कर,
हल्के किरदार चुन लिए,
देशभक्ति राष्ट्रवाद के झूठे गीत सुन कर,
आओ सब कामकाज छोड़कर,
राम-मंदिर चलें,घर गृहस्थी सब छोड़ कर,
आओ आबोहवा है कश्मीर जम्मू
चलो चलें, गाड़ने तम्बू
वोट का दौर है, आओ सुने वंचना
हल्के किरदार हैं करें न झूठी वंदना
स्पंदन होने लगी, हालात देख कर,
लड़ना पड़ेगा, अपनों से गीता पढ़ पढ़कर,
संविधान सिर्फ़ पहला विधान,
न्याय समानता में सब एक समान,
शिक्षा चिकित्सा से मत रहना वंचित,
भूखे रह कर भी होना है शिक्षित,
बिक गये सब सब संपदा और संसाधन,
दो जून की रोटी को तरस जाओगे,
गर बचा न पाते संविधान,
किरदार हल्के हैं, खोज लें कोई वफादार,
बंद हो जायेंगे, सब व्याभिचार अत्याचार,
खोज सको तो खोज लो, नवयान सा कुटुम्ब