हर ख़्वाब अधूरे छोड़ चले
हर ख़्वाब अधूरे छोड़ चले,
सभी रिश्ते नातों को तोड़ चले।
जीवन की सांध्य बेला में,
ज़माने से मुख मोड़ चले॥
हर ख़्वाब …
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जिन पलों को ना जी सका
जिन पलों को मैं जीना चाहा।
अनकही बात जो कह ना सका,
जिन शब्दों को सुनना चाहा॥
कब ख़बर थी नियति ने मेरे,
अरमान थे रौंदे कुचले।
डूबा सूरज शाम हुआ,
हम भी रूहानी घर को चले॥
हर ख़्वाब …
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जो काम अधूरा सोचा था,
मेरे हिस्से के वे पूरे थे।
मुकद्दर बनाने वाले ने,
सपने ही भरे अधूरे थे॥
चाहा क्या और क्या मिला,
यही सोच कर दिल मचले।
मंज़िल दिखी पर डूबी नाव,
आशियान-ए-लहर की ओर चले॥
हर ख़्वाब …
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✍️✍️✍️✍️✍️ by :
? Mahesh Ojha
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