हर ख़ुशी दूर मुझसे जाती है
मेरी किस्मत भी आज़माती है
हर ख़ुशी दूर मुझसे जाती है
ये शिकायत है वक़्त से मुझको
हर घड़ी ग़म को ले के आती है
तेरे जलवों का अक्स है दिल में
इक यही बात बस जिलाती है
दीप ख़ाली है रौशनी कैसी
पास में तेल है न बाती है
जबकि सागर है सामने फिर भी
प्यास अपना असर दिखाती है
जब कभी हम उदास होते हैं
ज़िन्दगी कहकहे लगाती है
जीत लेंगे वो प्यार की बाज़ी
चाल उनको हरेक आती है
हम सताये हुये ज़माने के
आपकी याद भी सताती है
है अंधेरा नसीब में ‘आनन्द’
रौशनी आ के लौट जाती है
– डॉ आनन्द किशोर