हर हाल में
हर हाल में तुमको जीना है।
ज़माने के दिए हर गम-ए-अश्क को पीना है।
रहमत है तुमपे खुदा का,खुदाई के लिए ज़ख्मों को सीना है।।
है ज़मीर तेरा बाखुदा शक्ल का,दिल तेरा मदीना है।l
ऐ दिल-ए-नज़्म मेरा हर ग़म का जबाब होगा
देखना तो ये है यहाँ कौन कितना कमीना है।
ऐ मेरे हीर नज़र,हर पीर को सहना है।
आब-ए-आईना ठहरा हुआ है।
सम्भाल के रखना तेरे सीने में मेरे प्रीत का सफीना है।।
ऐ मेरे गम-ए-मौसिकी ज़रा गुनगुना ले,
होथों पे तेरे हैं साज़,होंठों पे मेरे अल्फाज़
और साँसों पे तेरे स्वर का नगीना है।
बख्श दे नगमों को मेरे ,सुर-ए-सरगम छेड दे।
तानों पे है पकड़ तेरा,ले आलाप,कण्ठ तेरा सुरों का ज़रीना है।
संगीतमय स्वरलहरियों से आह्लादित हो उठेगा समाँ,
नई है नज्म,नई करीना है।
ये स्वाद् है तेरे तलफ्फूज़ का की कानों को स्वर आज़ लग रहा सुरीला है।
जी़ ले जिन्दगी सहर्ष मेरे,
क्योंकि हाल में तुमको जीना है।।
हर हाल में तुमको जीना है।
ज़माने के दिए हर गम-ए-अश्क को पीना है।
रहमत है तुमपे खुदा का,खुदाई के लिए ज़ख्मों को सीना है।।
है ज़मीर तेरा बाखुदा शक्ल का,दिल तेरा मदीना है।।