हर सिम्त उजालों से पुरनूर नज़र आये
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
ग़ज़ल
हर सिम्त चराग़ों से, पुरनूर नज़र आये।
ये रात अमावस की, पूनम सी निख़र आये।।
कुछ ऐसा असर लाये, इस साल ये दीवाली।
बस नूर मुहब्बत का, हर दिल में उतर आये।।
नफ़रत के अंधेरों से, आज़ाद वतन कर दे।
ये जश्ने चराग़ाँ अब, लेकर वो सहर आये।।
इस बार तो दीवाली में, एक तमन्ना है।
इक दीप लिये अपनी, छत पर भी क़मर आये।
रोशन हो “अनीस” अब घर, अपने भी पड़ौसी का।
वो दीप हर इक घर में, अब हमको नज़र आये।।
—अनीस शाह “अनीस”
सिम्त =ओर। पुरनूर=प्रकाशमान। क़मर=चाँद। ज़श्ने चराग़ा =दीपोत्सव ।सहर=सुबह