हर सांस की गिनती तय है – रूख़सती का भी दिन पहले से है मुक़र्रर
सब नियत है
आना इस जहां में अकस्मात् नहीं है
एक बीज – एक फूल के है मानिंद
हर शख़्स का मुक़द्दर
पहले से तयशुदा है
कुछ बीज – पेड़ बन के उभरे
कुछ चिलचलाती धूप में खप गए
कुछ की किस्मत है फूलों जैसा
कुछ प्रभु – चरण की शोभा
कुछ नगरवधू का गजरा
कुछ टिकठी में सज गईं
आदम नहीं कोई फ़रिश्ता
कुछ गफलत पाल के रखते हैं
खुशफहमी है ये उसकी
हर शय उसकी मुट्ठी में बंद है
पर नियति का यही फलसफा है
हर सांस की गिनती तय है
रूख़सती का दिन भी
पहले से है मुक़र्रर