*हर शाख पर उल्लू (हास्य व्यंग्य)*
हर शाख पर उल्लू (हास्य व्यंग्य)
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शहर के एक अधिकारी के पास विनोद बाबू का मसला फँसा हुआ था । वह रिश्वत की रकम ज्यादा माँग रहा था ।ज्यादा क्या ,बस सीधे – सीधे शब्दों में समझिए तो एक लाख रुपए की उसकी माँग थी । लेकिन विनोद बाबू ने एक लाख रुपए देना स्वीकार नहीं किया । कहने लगे “हमारी जान पहचान भी जिला स्तर पर है और हमारा पक्ष भी मजबूत है ।”
जब जिला स्तर पर पहुँचे तो मामला एक लाख से बढ़कर चार लाख का हो गया अर्थात चौगुनी रिश्वत दो ,तो काम पूरा होगा। विनोद बाबू जिला स्तर पर यह हाल देखकर भौंचक्के थे । कहने लगे “कोई बात नहीं ! मंडल तक जाऊंगा और उच्च अधिकारियों से कहकर अभी काम करा कर लाता हूं ।”
उन्हें अपने कार्य की शुद्धता और अपनी जान – पहचान पर पूरा भरोसा था। मंडल पर पहुंचकर अधिकारी ने उन्हें चाय और नाश्ता तो कराया लेकिन काम करने से मना कर दिया । कहने लगा “दस लाख रुपए ऊपर जाएंगे, तब यह काम हो पाएगा । मुझे एक पैसा नहीं चाहिए ।”
विनोद बाबू समझ गए कि मंडल के अधिकारी ने अपना रेट बढ़ा दिया है । ऊपर के अधिकारियों को वह जानते थे। राजधानी से उनका संपर्क चलता था । प्रदेश में उनकी तूती बोलती थी। कहने लगे “आप रहने दीजिए । मैं प्रदेश की राजधानी से काम करा लूंगा ।”
मूछों पर ताव देकर विनोद बाबू अपने प्रकरण की फाइल लेकर प्रदेश की राजधानी में गए । वहाँ उच्च अधिकारियों से बात की। अधिकारी कहने लगे “आपका कार्य हो जाएगा लेकिन पच्चीस लाख रुपए का खर्च आएगा ।”
विनोद बाबू भड़क गए । कहने लगे “पच्चीस लाख रुपए किस बात के ? कौन लेगा आपसे पैसा ? और हम क्यों देंगे ? ”
उच्च अधिकारियों ने उन्हें समझाया ” साहब !सरकार में देना पड़ता है । हम उच्च अधिकारी ऐसे थोड़े ही बने हैं ?”
विनोद बाबू ने अब सोच लिया कि सीधे मंत्री जी के पास जाकर शिकायत करूंगा और समूचे सरकारी – तंत्र को सस्पेंड करा दूंगा । आव देखा न ताव ! सीधे मंत्री जी के निवास पर पहुंच गए । मंत्री जी ने देखते ही विनोद बाबू को गले से लगा लिया । कहने लगे “हमें कैसे याद कर लिया ? आज तो हमारे भाग्य खुल गए !”
विनोद बाबू ने कहा “मसला गले लगाने का नहीं है । यह प्रकरण की फाइल है । आप आदेश करिए !”
अब मंत्री जी गंभीर हो गए । प्रकरण को सुना – समझा और कहने लगे ” एक करोड़ रुपए का खर्च आएगा । आप पार्टी – फंड में गुप्त दान कर दीजिए । आपका काम हो जाएगा ।”
विनोद बाबू ने कहा “सीधे-सीधे यह कहिए कि आपको एक करोड़ रुपए की रिश्वत चाहिए ?”
मंत्री जी ने मुस्कुराते हुए कहा “ऐसा नहीं कहते विनोद बाबू ! भावुक बनने के स्थान पर जमीनी सच्चाई को समझिए । आखिर मंत्री पद तो चार दिन की चाँदनी होती है ! थैले में जितनी बटोर कर इकट्ठी कर लो ,वही तो बाकी जीवन में काम आएगी । हमारा लक्ष्य एक हजार करोड़ रुपये पाँच वर्ष में इकट्ठा करना है ।”
विनोद बाबू के सामने अब सारा खेल खुला हुआ था । दुखी और निराश होकर उन्होंने मंत्री जी से अंतिम प्रश्न किया “नीचे से ऊपर तक यह जो अफसर उगाही कर रहे हैं ,इनको आपने खुली छूट क्यों दे रखी है ?”
मंत्री जी बोले “दरअसल पाँच सौ करोड़ रुपये तो यही लोग इकट्ठा कर कर के मुझे देते हैं । मेरे पास तो केवल गिने-चुने प्रकरण आते हैं और मैं उनसे डील करता हूँ। यह बेचारे शहर से लेकर प्रांत तक रिश्वत देकर अपने-अपने पदों पर आसीन हुए हैं । कुछ हमें कमा कर देते हैं ,कुछ अपने लिए बचा कर रखते हैं । ऐसे ही परस्पर आदान-प्रदान से प्रदेश चल रहा है । ”
विनोद बाबू प्रदेश का बुरा हाल देखकर बहुत दुखी थे । मंत्री जी से मिलने के बाद उनके निवास से जैसे ही बाहर आए, पुरानी सरकार में भूतपूर्व मंत्री सामने दिख गए । विनोद बाबू से नमस्ते हुई।
विनोद बाबू ने पूछा “भूतपूर्व मंत्री जी ! आजकल आपका कैसा हाल चल रहा है ?”
भूतपूर्व मंत्री ने कहा “क्या बताएं ! सारी आमदनी रुकी पड़ी है । कोई कमाई नहीं है । हमारी सरकार बन जाए तो हजार – दो हजार करोड़ रुपया कमा कर रखें।”
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लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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