हर शय में ढलने की आदत डाल रखी है
हर शय में ढलने की आदत डाल रखी है
आज तलक याद तेरी संभाल रखी है
कोई रंग भरो इसमें चुपचाप न बैठो
तस्वीर-ए-उल्फ़त कब से बे-हाल रखी है
मिलकर बतलाएँगे ए यार मेरे तुमको
कैसी -कैसी हमने मुसीबत पाल रखी है
ये और बात है के जान ही जाती रही
ए ज़िंदगी बगिया तेरी ख़ुशहाल रखी है
क्या होगा कितना होगा होगा के ना होगा
मैने ये बात वक़्त पर ही टाल रखी है
इसलिये गिराई है मेरे घर पे बिजली
आसमान वाले की कोई चाल रखी है
इस क़दर न हो उदास’सरु’तू देख खुदा ने
सूरत -ओ-सीरत क्या तिरी क़माल रखी है