हर शब किसी चराग़ सा जलकर बडा हुआ
तन्हाईयों की गोद में पलकर बडा हुआ
बचपन से अपने आप सम्भलकर बडा हुआ
ग़ैरों को अपना मान के जीता रहा हूँ मैं
इस राह ऐ पुलसिरात पे चलकर बडा हुआ
मैंने कभी भी रात से शिकवा नहीं किया
हर शब किसी चराग़ सा जलकर बडा हुआ
पत्थर से कोई वास्ता मतलब न था मगर
हर आईने की आँख में खलकर बडा हुआ
मखमल की चादरों का मुझे क्या पता के मैं
काँटों के बिस्तरों को मसलकर बडा हुआ
नासिर राव