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15 Aug 2016 · 1 min read

हर शब किसी चराग़ सा जलकर बडा हुआ

तन्हाईयों की गोद में पलकर बडा हुआ
बचपन से अपने आप सम्भलकर बडा हुआ
ग़ैरों को अपना मान के जीता रहा हूँ मैं
इस राह ऐ पुलसिरात पे चलकर बडा हुआ
मैंने कभी भी रात से शिकवा नहीं किया
हर शब किसी चराग़ सा जलकर बडा हुआ
पत्थर से कोई वास्ता मतलब न था मगर
हर आईने की आँख में खलकर बडा हुआ
मखमल की चादरों का मुझे क्या पता के मैं
काँटों के बिस्तरों को मसलकर बडा हुआ

नासिर राव

1 Comment · 722 Views
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