हर शख्स चोर है
हर शख्स चोर है
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यह कैसा शोर है,
चारों ही और है।
संभल जाओ जरा,
हर शख्स चोर है।
पग से पग है खफ़ा,
बदली सी तौर है।
वक्त रुकता नहीं,
चलता कब ज़ोर है।
मनसीरत मन भरा,
करता कब गौर है।
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सुखविंद्र सिंह. मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)