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22 Mar 2022 · 1 min read

हर वक्त लगी रहतीं हैं उनकी फिक्र।

हर वक्त लगी रहतीं हैं उनकी फिक्र।
अक्सर आ जाता हैं मेरे लबों पे उनका ज़िक्र।।1।।

ख़ुद ही संभालना पड़ता है खुदको।
अब कहां रहें दुनियाँ में वह यार- दोस्त-मित्र।।2।।

ज्यादा ना सिखाओ उसको यूं तुम।
काटी हैं बड़ी जिंदगी उसने भी खिजरा हिज्र।।3।।

आज भी वह ना भूला है हमें दिल से।
घरे दीवार उसके लगा देखा मेरा बनाया चित्र।।4।।

रहम अच्छा होता है पर सब पर नहीं।
समझो ना गरीब उस को वह है गलीच दरिद्र।।5।।

जानें क्या पहेली है वह भी रातों की।
दिन में होती हैं बड़ी ही पाक-साफ़ वो पवित्र।।6।।

घर की कीमत हमे पता है तुम्हे नहीं।
बड़ी राते गुजारी हैं हम ने बन कर मुहाफिज।।7।।

आदत है मेरी एहतराम करना सबका।
मेरा मुंह ना खुलवाना यूं इज्ज़त की खातिर।।8।।

बड़ा पाक पाक करते हो जाकर देखो।
आज भी समझते हैं जानें वाले को मुहाजिर।।9।।

जो महकते हो महफिलों में लगाकर।
फूलो की मौत ए कुर्बानी पर बना है यह इत्र।।10।।

हुनरबाज अब कहां मिलते हैं जहां में।
अब ना बनते हैं हुनर में उस्तादों के शागिर्द।।11।।

ताज मोहम्मद
लखनऊ

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