हर लो हरिहर हर गम मेरा….
हर लो हरि-हर, हर गम मेरा !
लगा लिया है मैंने प्रभुवर,
तुम्हारे चरन-कमलों में डेरा !
हर लो हरि-हर, हर गम मेरा !
इस जगती में जब सब सोते,
एक अकेली जगती हूँ मैं !
नाम की तेरे दे कर दुहाई,
प्राणों को अपने ठगती हूँ मैं !
मन में मूरत बसी है तेरी,
जिह्वा पर बस नाम है तेरा !
हर लो हरि-हर, हर गम मेरा !
मैंने सुना है भक्त पुकारे,
तब तुम दौड़े आते हो !
अपना हर एक काम जरूरी
उस पल छोड़े आते हो !
अपने प्रन की लाज रख लो,
डालो इधर भी फेरा !
हर लो हरि-हर, हर गम मेरा !
जाना जब से अंश हूँ तुम्हारा
खोज में पगली हुई दीवानी ।
नाता जबसे जुड़ा है तुमसे
सारे जग से मैं हुई बेगानी ।
अज्ञान-तिमिर हर लो मेरा,
कर दो अब सुखद सवेरा ।
हर लो हरि-हर, हर गम मेरा !
खुद से जुदा कर मुझको तुमने
भेज दिया संसार में ।
कैसे तुम तक अब मैं आऊँ
भटक रही मझधार में ।
कोई सुगम सी राह सुझा दो
मुझे महा विपद् ने घेरा ।
हर लो हरि-हर, हर गम मेरा !
-डॉ. सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद (उ.प्र.)
“काव्य सृष्टि” से