हर रिस्ता कुछ कहता है
समाज, यानी एक से ज्यादा
सो हजार यानी बेसुमार लोग
जहाँ अकेलापन नही
दुःख न हो
हो इच्छाये व् स्वप्न
वही तो है समाज
प्यार दुलार,रस्मो रिवाज
उत्सव, त्यौहार और
एक दूसरे का साथ
प्रेम की कड़ी ही जोड़ती है
किसी एक आदमी को
दूसरे के साथ
यही है मानव समाज
प्रकृति के कण कण
है हमारा सम्बंध
रिश्तो के रूप अलबेले
कहि पहचाने सम्बन्ध
कहि अजनबी आस
स्त्री पृरुष रहते साथ
परवाज भरते
कहि ठिठकते
कभी दो कदम चलते
अलग अलग ग्रहो से
क्या है सम्बन्ध
बेटा, बेटी,,,,,भाई ,बहिन
प्यार करने वाले
एक कुटुंब, एक शहर
एक ,देश,,,,,औरसारी दुनियां
कैसे जुड़े एक दूसरे से
हर रिस्ता कुछ कहता है